लगभग हर भारतीय पुरुष के जीवन में एक वक्त ऐसा आता है कि वह दफ्तर के बाद घर नहीं जाना चाहता। एक बेहद प्यारी 10-12 महीने की बिटिया का बाप, जो उसे बेइंतहा मोहब्बत करता है, जो उसकी एक मुस्कान पर अपने सारे दुख दर्द भूल जाता है, उसके लिए घर में रहना मुश्किल हो जाता है। रविवार की छुट्टी उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होती। शाम को 6 बजे दफ्तर से निकलना उसके लिए बॉस की हर एक डांट, हर एक ताने से कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
जीवन में शांति चाहते हैं तो दुसरों की शिकायतें करने से बेहतर है खुद को बदल लें। क्योंकि पूरी दुनिया में कारपेट बिछाने से खुद के पैरों में चप्पल पहन लेना अधिक सरल है।